Read Holy Shiv Purana Shlokas – Shiv Purana Story – Hindi Shlok
जिसे अपने कुकृतयपर हार्दिक
पश्चात्ताप होता है, वह अवश्य
उत्तम गतिका भागी होता है ।
इसमें संशय नहीं ॥
जो वक्ता और श्रोता,
अनेक प्रकारके कर्मोमें भटक रहे हो,
काम आदि छः विकारोंसे युक्त हो,
स्त्रीमें आसकित रखते हो
और पाखंडपूर्ण बात कहते हो
वे पुण्य के भागी नहीं होते ।
विदेश्वरसंहिंता, रुद्रसंहिता, विनायकसंहिता, उमासंहिता,
मातृसंहिता, एकादशरुद्रसंहिता, कैलाससंहिता, शतरुद्रसंहिता,
कोटिरुद्रसंहिता, सहस्त्रकोटरुद्रसंहिता, वायवीयसंहिता तथा धर्मसंहिता
बारह भेद या खण्ड है, यह बारहो संहिताएँ अत्यन्त पुण्यमयी मानी गयी है ।
शिवपुरानमें भक्ति, ज्ञान, और वैराग्य,
इन तीनोंका प्रीतिपूर्वक गान किया गया है
और वेदांतवेद्य सद्ववस्तु का विशेष रुप से वर्णन हैं।
जहाँसे मनसहित वाणी उन्हें
न पाकर लौट आती है
तथा जिनसे ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र
और इंद्र आदिसे युक्त
यह सम्पूर्ण जगत समस्त भूतों एवं
इन्द्रियोंके साथ पहले प्रकट हुआ है,
वे है ये देव, महादेव सर्वज्ञ एवं
सम्पूर्ण जगत के स्वामी हैं।
कानसे भगवानके नाम गुण और लीलाओंका श्रवण ,
वाणीद्वारा उनका कीर्तन तथा मनके द्वारा मनन,
इन तीनोंको महान साधन कहा गया है ।
तातपर्य यह की महेश्वरका
श्रवण, कीर्तन और मनन करना चाहिए॥
भगवान शिवमें भक्ति होनेसे
मनुष्य संसार-बंधनसे मुक्त हो जाता है ।
एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्मरूप होनेके कारन
“निष्कल” (निराकार) कहे गए हैं ।
रूपवान होने के कारन उन्हें
‘सकल‘ और ‘निष्कल’ दोनों हैं।
शिवके निष्कल –
निराकार होने के कारण ही उनकी पूजाका
अर्थात “शिवलिंग,
शिवके निराकार स्वरुप का प्रतिक है”
साकार विग्रह उनके
साकार स्वरूपका प्रतिक होता है
सकल और अकल रूप होनेसे ही
वे “ब्रह्मा” शब्दसे कहे जानेवाले परमात्मा हैं।
यही कारण हैं सब लोग लिङ्ग (निराकार) और
मूर्ति (साकार) दोनों में ही सदा भगवान शिवकी पूजा करते हैं।
ते जन्मभाजः खलु जीवलोके ये वै सदा ध्यायन्ति विश्वनाथम् !
वाणी गुणान् स्तौति कथां श्रृणोति श्रोत्रद्वयं ते भवमुत्तरन्ति !!
जो सदा भगवान् शिव का ध्यान करते हैं,
जिनकी वाणीशिव के गुणों की स्तुति करती है
और जिनके कान उनकी कथासुनते हैं,
इस जीव-जगत् में उन्हीं का जन्म लेना सफल है !
वैनिश्चय ही संसार-सागर से पार हो जाते हैं !
